Thursday, October 30, 2014

यूं ही नहीं है पंच प्रयाग का महत्व, हर प्रयाग में है कुछ रहस्य।



ऋषिकेश से 70 किलोमीटर की दूरी पर पहला प्रयाग पड़ता है जिसे देवप्रयाग कहते है। रामायण और केदारखंड में उल्लेख मिलता है कि रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान राम, लक्ष्मण और सीता यहां तपस्या करने आये थे।

धोबी के कहने पर जब राम ने सीता का त्याग किया था तब लक्ष्मण ने यहीं पर सीता को छोड़ा था। भागीरथी की तपस्या से गंगा जब धरती पर आने के लिए तैयार हुई तब यहीं पर सबसे पहले गंगा प्रकट हुई थीं। धरती पर गंगा के आगमन को देखने के लिए यहां 33 करोड़ देवी-देवता भी आये थे।

इस स्थान पर भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है। दोनों नदियों की धाराएं मिलकर गंगा कहलाती हैं। माना जाता है कि यहां पर स्नान करने से प्रयाग स्नान का फल मिलता है।

संगम के अलावा यहां शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर दर्शनीय है। डंडा नागराज मंदिर और चंद्रवदनी मंदिर भी यहां देखने योग्य है।



जहां देवर्षि नारद की थी तपस्या

दूसरा प्रयाग है रुद्रप्रयाग। इसे देवर्षि नारद की तपस्थली कहा जाता है। यहां पर भगवान विष्णु के चरण पखराते हुए अलकनंदा और भगवान शिव के चरणों का रज लेती हुए पवित्र मंदाकिनी नदी आकर मिलती है।

यानी यहां शिव और विष्णु का मिलन होता है। इस संगम में स्नान करने से एक साथ भगवान शिव और विष्णु की कृपा प्राप्त होती है ऐसी मान्यता है।



जहां मिलन हुए था शकुन्तला एवं राजा दुष्यंत का

उत्तराखंड का तीसरा प्रयाग है कर्ण प्रयाग यह स्थान शकुन्तला एवं राजा दुष्यंत का मिलन स्थल माना जाता है। इस स्थान पर पवित्र अलकनंदा के साथ पिण्डारी नदी आकर मिलती है।



भगवान श्री कृष्ण के पिता ने की थी यहां तपस्या

उत्तराखंड का चौथा प्रयाग है नंद प्रयाग। कर्ण प्रयाग से मात्र 22 कि मी. की दूरी पर अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम होता है। यहां पर राजा नंद ने तपस्या की थी। इसलिए इसे नंद प्रयाग कहा जाता है। यह उत्तराखंड का चौथा प्रयाग माना जाता है। यहां से पैदल रूद्र कुंड तक यात्रा कर सकते हैं।


उत्तराखंड का पांचवा प्रयाग

उत्तराखंड का पांचवा प्रयाग है विष्णु प्रयाग। यहां विष्णु कुण्ड का बड़ा महत्व है यहां धौली गंगा तथा विष्णु गंगा का संगम होता है। श्रद्घालु इस प्रयाग के दर्शन करते हुए बद्रीनाथ धाम की यात्रा करते हैं।

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Source: Amar Ujala
Apni Devbhoomi Uttarakhand


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