Thursday, January 1, 2015

उत्तराखंड की जुड़वा बहनें दुनिया के आखिरी छोर पर

दुनिया की सात ऊंची चोटियों को फतह कर विश्व रिकॉर्ड कायम करने पर्वतारोही जुड़वां बहनों ताशी-नुंग्शी ने देहरादून, उत्तराखंड और देश को नए साल का बड़ा तोहफा दिया है।


दोनों बहनों ने सातवीं सबसे ऊंची चोटी फतह करने के महज 12 दिन बाद ही स्कीइंग करते हुए दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने का कीर्तिमान स्थापित किया है। ताशी-नुंग्शी ने आठ दिन में यह अभियान पूरा किया। दोनों ध्रुव पर पहुंचने वाली पहली जुड़वां बहनें हैं।

देहरादून के जोहड़ी गांव निवासी 23 वर्षीय बहनों ताशी और नुंग्शी ने वर्ष 2012 में मिशन टू फॉर सेवन अभियान शुरू किया था। अभियान की आखिरी चोटी अंटार्कटिका स्थित माउंट विनसन पर दोनों बहनों ने 17 दिसंबर को तिरंगा फहराया।

18 दिसंबर को बेस कैंप पर लौटने के बाद 21 दिसंबर से दोनों ने ‘ऊंचाइयों से आगे, दुनिया की हद तक’ अभियान के तहत दक्षिणी ध्रुव का सफर शुरू किया।



सिर्फ दो साल में नापी दुनिया
अंटार्कटिका से 115 किलोमीटर की दूरी जुड़वां बहनों ने स्कीइंग कर पूरी की। दोनों के पास 30-40 किलो सामान भी था। इस दौरान -30 से -40 डिग्री तापमान, 50-60 किलोमीटर प्रति घंटे की बर्फीली हवाओं के बीच स्कीइंग करते हुए दोनों ने अभियान के आठवें दिन 28 दिसंबर को दोपहर एक बजे दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहराया।

मिशन में ताशी-नुंग्शी के साथ चीन और अन्य देशों के तीन पुरुष और एक महिला साथी भी रही। बता दें कि भारत की रीना कौशल धर्मसक्तू ही इससे पहले दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला हैं।

बहनों ने मिशन टू फॉर सेवन के तहत सबसे पहले अफ्रीका के माउंट किलिमंजारो पर आठ फरवरी 2012 को तिरंगा फहराया। 19 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एशिया की माउंट एवरेस्ट, 22 अगस्त 2013 को यूरोप में माउंट एल्ब्रुस और 29 जनवरी 2014 को दक्षिणी अमेरिका में माउंट अकांकागुआ को फतह किया।

दोनों बहनों की चौथी चोटी पापुआ न्यू गिनी की माउंट कार्सटेंज पिरामिड रही, जिस पर उन्होंने 29 जनवरी 2014 को तिरंगा फहराया। छठी चोटी उत्तरी अमेरिका की माउंट मेकिनले पर वे चार जून 2014 और अंटार्कटिका की माउंट विनसन मैसिफ पर 17 दिसंबर 2014 को चढ़ीं।

ताकत नहीं है, लेकिन हम रुकेंगी नहीं...
‘डैड, बॉडी में ताकत नहीं है, वेट भी घट गया है।’ दक्षिणी ध्रुव के लिए अपने अभियान ‘ऊंचाइयों से आगे, दुनिया की हद तक’ के दूसरे ही दिन ताशी-नुंग्शी ने सेटेलाइट फोन पर यह बात अपने पिता वीके मलिक से कही।

बच्चियों ने बताया कि बर्फीले तूफान के बीच अपना सामान ढोकर स्कीइंग के दौरान पैरों पर छाले पड़ गए हैं, तबीयत बिगड़ने लगी है तो पिता एकबारगी आशंकित हो गए।

लेकिन अगले ही पल बेटियों ने जब कहा, ‘देखते हैं बॉडी कितना साथ दे पाती है, लेकिन हम रुकेंगी नहीं। हम अपना सर्वश्रेष्ठ देंगी....’ तो वीके मलिक की आंखों में फिर चमक जग उठी। आखिर ताशी-नुंग्शी ने हौसले के दम पर एक बार फिर पिता का सिर ऊंचा कर दिया।

अंटार्कटिका की 16045 फीट ऊंची पर्वत चोटी माउंट विनसन के बाद ताशी-नुंग्शी ने दक्षिणी ध्रुव का अभियान शुरू किया। 21 दिसंबर से अभियान शुरू हुआ। पिता वीके मलिक ने बताया कि 15 किलोमीटर स्कीइंग के बाद ताशी-नुंग्शी ने कैंप लगाया। वहां से सेटेलाइट फोन पर उन्होंने बताया कि दोनों का वजन 6-6 किलो घट गया है।

मलिक बताते हैं कि बातचीत के दौरान बेटियों की आवाज में तकलीफ और निराशा झलक रही थी। इस पर उन्होंने बेटियों को कहा, ‘बेटा, मिशन टू फॉर सेवन और अब इस अभियान का फैसला आपने खुद लिया है। खतरा अधिक है तो रहने दो।’ लेकिन फिर दोनों ने खुद ही आगे बढ़ते रहने की बात कही।

मलिक बताते हैं कि ताशी-नुंग्शी के इस अभियान का मकसद दुनिया को यह संदेश देना था कि बेटियां सशक्त होती हैं। वे ठान लें तो दुनिया की हर चुनौती पार कर सकती हैं। बताया कि ताशी-नुंग्शी को स्कीइंग की आदत नहीं थी। सिर्फ 31 दिन का ही उन्होंने प्रशिक्षण लिया था।

उस पर बर्फीली हवाओं के बीच वे हर दिन 30-40 किलो वजन लेकर औसतन 15-20 किलोमीटर स्कीइंग कर रहे थे। इस दौरान दोनों को मसल क्रैंप, डिहाइड्रेशन सहित अन्य दिक्कतों से जूझना पड़ा। बताया कि दल में शामिल चीन के पर्वतारोही को फ्रास्ट बाइट (अत्यधिक ठंड से शरीर सुन्न पड़ जाना) हो गया था।

उसका चेहरा बुरी तरह खराब हो गया था। उसे देखकर भी दोनों डर गई थीं, लेकिन फिर अभियान के मकसद ने उन्हें हौसला दिया और उनके कदम ध्रुव पर पहुंचकर ही रुके।

दस दिन का सफर आठ दिन में
अंटार्कटिका से दक्षिणी ध्रुव का सफर दस दिन में पूरा करने का लक्ष्य था। लेकिन मौसम खराब होने के कारण शुरुआत के दो दिन ताशी-नुंग्शी को माउंट विनसन के बेस कैंप पर ही रहना पड़ा। 21 दिसंबर को अभियान शुरू हुआ, तो दोनों बहनों ने आठ ही दिन में इसे पूरा कर लिया।

13 को पहुंचेंगी घर
पिता वीके मलिक ने बताया कि ताशी-नुंग्शी गुरुवार को चिली पहुंच चुकी थीं। दस जनवरी को दोनों भारत लौटेंगी। 13 जनवरी को दोनों बहने देहरादून स्थित घर आएंगी। घर में उनके स्वागत की तैयारी की जा रही है।

सिर्फ 31 दिन स्कीइंग का प्रशिक्षण
वीके मलिक ने बताया कि ताशी-नुंग्शी ने पर्वतारोहण का तो अच्छा अभ्यास और प्रशिक्षण लिया है, लेकिन स्कीइंग के लिए वक्त नहीं मिला।

वर्ष 2011 में गुलमर्ग में 21 दिन और दयारा ग्लेशियर उत्तराखंड में 10 दिन स्कीइंग का कोर्स ही दोनों कर सकीं। माउंट मैकिनली पर चढ़ने के दौरान दोनों ने करीब 15 किलोमीटर की स्कीइंग ही की थी। लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर दोनों ने 115 किलोमीटर की स्कीइंग की, जबकि इसके लिए लंबे अभ्यास और अनुभव की जरूरत होती है।

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Source: Amar Ujala
Apni Devbhomi Uttarakhand

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